नक्षत्र क्या है? | 27 नक्षत्रों की जानकारी हिंदी में उनके नाम, प्रकार व विशेषताएँ

नक्षत्र क्या है –

27 तारागणों का परिवार, समुदाय या नक्षत्र है और अभिजित् नक्षत्र क्रांति वृत्त मंडल के बाहर है। ज्योतिष के रहस्यों को जानने के लिए नक्षत्रों की पहचान करना आवश्यक है। इसलिए मैं इन सभी 27 नक्षत्रों की पहचान दे रहा हूं।

27 नक्षत्रों की जानकारी हिंदी में उनके नाम, प्रकार व विशेषताएँ- 

 

1. अश्विनी (Beta ariltis) –

 

इसके मुख्य तीन तारे होते हैं दो तारें बीच में और आस-पास कुछ तिरछे एक से दूसरा कुछ नीचा परंतु ऊपरी छोर पर एक तारा और नीचे एक तारा। ये दोनों ही तारे चमकदार हैं परंतु उत्तर की ओर तारा अधिक चमकदार है और तीसरा तारा जो पूर्व दिशा में है वह सर्वाधिक तेज होता है।  इसके पश्चिम में भी एक तारा है । यह नक्षत्र क्वार के महीने में 8-9 बजे रात को पूर्व बिंदु से कुछ उत्तर की ओर हटकर उदय होता है तथा 5 घंटे के बाद पश्चिम बिन्दु से उत्तर की ओर अस्त हो जाता है। इससे तीन तारों का आकार घोड़े के मुख के समान होने से इन्हें अश्विनी कहा जाता है। कार्तिक की पूर्णिमा को लगभग चंद्रमा इस नक्षत्र पर रहता है।

2. भरणी (Li-arietis) –

 

इसके भी तीन छोटे-छोटे तारे है जो त्रिकोण बनाते है। यह अश्विनी के आगे पूर्व की ओर है। इसका आकार योनि के समान बताया गया है परंतु यह त्रिकोणाकार है।

 

3. कृत्तिका (Exatauri) –

यह तारागण का एक गुच्छा-सा दिखाई देता है। किसान लोग इसे भली प्रकार से पहचानते हैं। कार्तिक के महीने में संध्या काल में यह पूर्व में दिखाई देता है। इसका आकार छुरा के समान कहा गया है। फरवरी मास में यह संध्या समय ऊपर आता है। कार्तिक पूर्णिमा के लगभग चंद्रमा इसी नक्षत्र में रहता है।

4.रोहिणी (Aldebaran) –

इसमें पांच तारे माने गए हैं। ये गाड़ी के समान माना गया है, परंतु देखने में एक कोष्ठ-सा दिखाई देता है। यह कृत्तिका के कुछ पार्श्व से नीचे की ओर दिखता है तथा अधिक चमकीला होता है। ये तारे कृत्तिका नक्षत्र से रोहिणी

कुछ दक्षिण की ओर हैं। फरवरी में यह संध्या के समय सिर पर आते हैं और कुछ दक्षिण की ओर भी रहते है।

5.मृगशिरा (Lambda orionis) –

इसके चारों ओर चौकोण बनाते हुए 4 प्रकाशमान तारे है। इसके बीच में तीन तारे एक-दूसरे के लाइन में है। इसे हिरणी या खटोला भी कहते है। मृगशिरा के अंत में तीन तारे पास-पास में एक सीध में रहते है। सामने की ओर तीन तारों का एक छोटा सा त्रिकोण है उसे हिरणमुख कहा जाता है मार्गशीर्ष मास में संध्या के समय यह पूर्व में दिखता है तथा पूर्णिमा के लगभग ही चंद्रमा इस नक्षत्र पर रहता है। ये तारे आकाश गंगा के किनारे हैं और जब सिर पर दिखाई देते है। ये रोहिणी से कुछ परे हटकर दक्षिण दिशा की ओर हैं। मार्च के महीने में संध्या वेला मे ये सिर पर आते है।

6.आर्द्रा (Gamma Geminorum) –

इसका एक तारा है। यह प्रायः भरणी के सीध में है तथा मृगशिरा एवं पुनर्वसु के मध्य में दिखाई देता है। मार्च के महीने में व्यालू के समय लगभग यह सिर पर आता है तथा सिर के कुछ दक्षिण की ओर दिखाई देता है। इसका आकार मणि के समान माना गया है। इसका प्रकार सामान्य है तथा यह आकाश गंगा के बाहरी किनारे पर है। इसकी पहचान के लिए और तारों को पहचान कर इसे खोजना चाहिए।

7. पुनर्वसु (Pollux)

 

 इसके चार तारे होते है। इनमें दो तारे  और तीसरा तारा विशेष प्रकाशवान है | दो तारे उत्तर की ओर है तथा दो तारे दक्षिण की तरफ दिखाई देते है। उत्तर की ओर के 2 तारे सबसे पहले दिखाई देते है।

8.पुष्य (Deltacamcri) –

 

इसके भी तीन तारे बहुत छोटे-छोटे होते है। इसमें छोटा सा तिकोण बनता है। तथा बाण के समान इसका आकार माना गया है। अप्रैल के महीने में यह संध्या समय में ऊपर दिखाई देता है। पौष की पूर्णिमा को चंद्रमा इसी नक्षत्र पर रहता है।

9. आश्लेषा (Zeta Hydrac) –

इसके पांच तारे होते है। इनका आकार चक्र के समान बताया गया है। यह पुष्य नक्षत्र के दक्षिण में है चंद्रमा पुष्य से आश्लेषा पर शीघ्र ही आ जाता है इसके छोटे-छोटे तारों के बीच एक तारा विशेष चमकदार होता है

10. मघा (Regulus) –

इसके छः तारे माने गये हैं। परंतु छः तारों का आकार हसिया के समान दिखाई देता है। इसके चार तारे तो बड़े है, इनका आकार एक समानांतर भूज चौकोण जैसा बनता है। इसके पश्चिम की ओर दक्षिण कोण का तारा तेजस्वी है और पहली श्रेणी का है। इसके दक्षिण में एक बारीक तारा है जो पांचवां तारा है पूर्व के दोनों तारे दक्षिण तारे से अधिक तेजस्वी हैं। माघ पूर्णिमा को चंद्रमा इसके समीप रहता है।

11-12. पूर्वा व उत्तरा फाल्गुनी (Thela Leonis & Denebola)

मघा के पूर्व के कुछ उत्तर में पूर्वा फाल्गुनी व उत्तरा फाल्गुनी के चार तारे हैं जो कि चौकोर समान दिखाई देते है। पश्चिम की ओर के दो तारे पूर्वा फाल्गुनी हैं। इसके उत्तर की ओर के दो तारे को उत्तरा फाल्गुनी कहलाते है। इसके नीचे दक्षिण का तारा विशेष तेज चमकता है। फाल्गुन के महीने में इस नक्षत्र पर पूर्णिमा को चंद्रमा आता है।

13. हस्त (Delta corvi) –

इसमें 5 तारे है। नाम के समान इनका आकार भी हाथ के समान है। यह मघा नक्षत्र के दक्षिण की ओर है । हाथ की

अंगुलियों के समान होने से ये पांच तारे हाथ के समान ही दिखाई देते है और शिरो बिंदु से 30-40 अंश दक्षिण की ओर रहते है।

14. चित्रा (Spica) –

चित्रा हस्त नक्षत्र के पास में पूर्व की ओर कुछ उत्तर की ओर यह एक ही तारा होता है जो बड़ा ही प्रकाशवान् है। ये मोती के समान बतलाया गया है। चैत्री पूर्णिमा को चंद्रमा इस नक्षत्र पर आता है। यह तारा प्रायः क्रांतिवृत्त पर है।

15. स्वाती (Arvturus) –

यह अकेला ही बहुत बड़ा और कुछ लाल रंग का होता है। इसका आकार मुंगे के समान बताया गया है। चित्रा से उत्तर में यह तारा चमकता हुआ दिखाई देता है। चित्रा से प्रायः 50 मिनट बाद यह शिरोबिंदू पर आता है और 1:5 घंटे बाद खत्म हो जाता है। यह चित्रा से 30 डिग्री दक्षिण में रहता है।

16. विशाखा (Alpha librae)-

इसके दो तारे है। दोनों ही तारे एक समान तेजस्वी है परन्तु इसका तेज चित्रा से कम होता है। चित्रा के सामने ही नीचे की ओर दो तारे चमकते हुए दिखते हैं, परंतु चित्रा से इसका तेज अवश्य कम है। पहले तारे के बाद दूसरा तारा 26 मिनट के बाद उगता है। उसके बराबरी से दो और भी छोटे-छोटे तारे हैं जिससे यह एक चौकोना-सा बन जाया करता है। वैशाख में चंद्रमा पूर्णिमा को इस नक्षत्र पर आता है तथा मई महीने में संध्या समय उदय होता है। उदय होने के समय पूर्व और आग्नेय कोण के मध्य दिखाई देता है। दोनों बड़े तारों में एक चित्रा के तारा के सामने नीचे की ओर दिखता है और दूसरा इसके बायी ओर दिखाई देता है।

17. अनुराधा (Delta Scorpii) –

इसके चार तारे हैं। एक ही सीध में उत्तर-दक्षिण को है और विशाखा के नीचे पूर्व में है। विशाखा के बड़े तारों से एक सीधी रेखा अनुराधा के तारों की सरल रेखा के छोरों से मिलाई जाए तो उत्तर की अपेक्षा दक्षिण का अंतर कहीं अधिक प्रकट करेगा। इसका आकार भात की बलि अर्थात् पिंड के समान बताया गया है। यानि किसी ने भात की बलि के चार कौर उठाकर चार जगह एक रेखा में एक के नीचे एक रख दिया हो।

18. ज्येष्ठा (Antares) –

इसके तीन तारे एक सीध में पूर्व-पश्चिम को हैं। अनुराधा नक्षत्र के सीधी रेखा के बीच से पूर्व की ओर तथा उसके सामने अनुराधा के तारे एक के नीचे एक है। ज्येष्ठा के तारे आड़े एक के बाद एक है। इसका आकार कुण्डली के समान बताया गया है। ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को चन्द्रमा इस नक्षत्र पर रहता है।

19. मूल (Lambada scorpii) –

ज्येष्ठा के पूर्व में ग्यारह तारे हैं जो बिच्छु के डंक के समान गोलाई मे होते है। आकाश गंगा में यह क्रांतिवृत्त के दक्षिण में है। जून के उत्तरार्द्ध में यह उदय होता है। और सिंतबर मास में संध्या को अप्रैल में प्रातःकाल जल्दी ही दिखाई देता है। अनुराधा तारों को मिलाकर देखने पर ये 50-60 अंश दक्षिण की ओर लटकता दिखाई देता है।

20-21. – पूर्वाषाढ़ा उत्तराषाढ़ा (Delta sagittarii phi sagittarii) –

इनमें प्रत्येक के दो-दो तारे मिलकर एक समकोण जैसा आकार बन जाता है। दो तारे

पूर्वाषाढ़ के आकास गंगा के बाहर हैं। उत्तराषाढ़ा के

उत्तर-दक्षिण की लंबाई का पूर्वाषाढ़ा उत्तराषाढ़ा परिमाण प्रायः दो गुना है। पूर्वाषाढ़ा का आकार हाथी दांत और उत्तराषाढ़ा का आकार मंच समान बताया गया है।

21. अ. अभिजित् (Vega) –

दोनों पूर्वाषाढ़ा व उत्तराषाढ़ा के बाद अभिजित् तारा लिया जाता है। यह तारा उत्तर की ओर आकाश गंगा के किनारे पर है और बड़ा ही प्रकाशवान् है इसके पास दो छोटे-छोटे और तारे हैं। इससे मिलकर यह त्रिकोण जैसा दिखाई देता है। इस नक्षत्र को मिलाने पर नक्षत्र-संख्या 28 हो जाती है परंतु इसे छोड़कर केवल क्रांति प्रदेश के ही 27 नक्षत्र ही माने जाते है।

22. श्रवण (Altair) 

इसके तीन तारे है, इनमें बीच का तारा प्रथम श्रेणी का और बहुत चमकीला है। ये तारे आकाश गंगा में उत्तराषाढ़ा से बहुत उत्तर के कुछ पूर्व कोने में हैं। श्रावण की पूर्णिमा को चंद्र इस नक्षत्र के निकट आता है। इन्हें शीघ्र ही पहचाना भी ज सकता है। एक सीध में ये तीनों तारे है और प्रा उत्तर-दक्षिण दिशा में कुछ तिरछे हैं।

23. धनिष्ठा (Alpha Delphini) –

इसके पांच तारे होते है जो पास-पास में है। आकार इसका मृदंग जैसा कहा गया है नीचे का छोटा तारा छोड़कर चार तारों को देखे तो इनका आधार चपटा चौकोर जैसा दिखाई देता है। यह आकाश गंगा के बाहर है। ये चारों तारे पास-पास और कम प्रकाशवान है।

24.शतभिषा (Lamada Aquarii) –

नाम के अनुसार यह 100 तारो का झुंड है इसे गोलाकार बताया गया है। प्रायः 28 अंश सिर के दक्षिण की ओर दिखता है। इसी की सीध में बहुत नीचे दक्षिण में 9 ही प्रकाशवान् तारे है जिसे याममत्स्य कहते हैं। दोनो का अंतर 8 अंश का है।

25-26. पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद (Markab Algenile) –

याम—मत्स्य और शतभिषा के प्रकाशवान् तारा को 1 सरल रेखा से मिलाएं और इस रेखा को उत्तर की ओर बढ़ाते जाएं तो इस रेखा के कुछ पश्चिम की ओर पूर्वाभाद्रपद के दो तारे आते है याममत्स्य से जितने अंश पर उत्तर में शतभिषक हैं उतने ही अंश पर शतभिषक से उत्तर में पूर्वाभाद्रपद का एक तारा है और उसके बाजू में ठीक उत्तर में 13 अंश पर उत्तर भाद्रपद का दूसरा तारा है। ये दोनों एक जैसे प्रकाशवान् है। प्रत्येक के पूर्व में एक-एक तारा है, इस प्रकार दो तारे है। इन दोनों को उत्तराभद्रपद कहते है। इन दोनों में उत्तर का तारा प्रकाशवान है। यह दूसरी श्रेणी का तारा है ।

पूर्व भाद्रपद के दो तारे और उत्तर भाद्रपद के दो तारे मिलकर एक चौकोर बनाते हैं। भाद्रपद मास की पूर्णिमा को चंद्रमा इस नक्षत्र के पास रहता है। पूर्व भाद्रपद का आकार मंच जैसा और उत्तर भाद्रपद का आकार यमल जोड़ा जैसा बताया है।

27. रेवती (Zeta piscium) –

इसमें 32 तारे है। इसका आकर ठोलक के जैसा है और वैसा ही दिखता है। ये तारे छोटे-छोटे होते है। आग्नेय कोण के लगभग 10-10 अंश पर तारों की एक लाइन-सी होती है जो पूर्व-पश्चिम की ओर जाती है। इसमें 6-7 तारे प्रकाशवान और प्रायः एक-दूसरे के समानांतर है।  इनके दक्षिण में अश्विनी नक्षत्र है।

आकाश गंगा (Milk way) यह आकाश में उत्तर से दक्षिण की ओर तिरछी गई है। इसमें बहुत सारे तारों का घना समुदाय होता है। जिसके कारण आकाश का वह भाग श्वेत जैसा दिखाई देता है। जैसे बादलों के टूकड़े छाए हो।

अश्विनी से 12 नक्षत्र अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मधा, पूर्वा फाल्गुनी व उत्तरा फाल्गुनी तक सभी तारे विषुवत् वृत्त के उत्तर में है तथा स्वाती, अभिजित्, श्रावण, धनिष्ठा पूर्वा-उत्तरा भाद्रपद व रेवती इनके तारे भी विषुवत् वृत्त के उत्तर में तथा शेष तारे दक्षिण में है।

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